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“कंधों” पर “सिस्टम” की लाश

ताहिर की कलम से
ताहिर की कलम से
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ताहिर खान, मेरठ ।
बेहद शर्मनाक, बेहद अफसोसजनक, इंसानियत को शर्मशार करती दो तस्वीर, हर इंसान के दिल को दहला देनी वाली तस्वीर, हर व्यक्ति को सोचने पर विवश करती दो तस्वीर,दोनों तस्वीरें मानवता के मुंह पर करारा तमाचा, देश के विकास की पोल खोलती हुई तस्वीर, ये तस्वीरें दिखाती है की हमारी ज़िन्दगी से संवेदनाशीलता जैसे कहीं खोकर रह गयी हो, ये हमारे सामजिक उत्तरदायित्व की विफलता है जनाज़ा निकल रहा है मेरे देश का जी हां दरअशल हमने इन शब्दों का प्रयोग इसलिए किया क्योंकि जिस देश की आबादी 125 करोड़ से ज़्यादा की हो, जिस देश को सोने की चिड़िया कहा जाता हो, जो देश डिजिटल हो रहा हो, जिस देश में बुलेट ट्रेन चलने जा रही हो , जिस देश में चुनाव के समय ग़रीबी को मुद्दा बनाकर चुनाव में जीत का बिगुल बजाया जाता हो….उस देश का गरीब दर-दर की ठोकरें खाता आज भी एम्बुलेंस का इंतज़ार कर रहा है ।
पीएम नरेन्द्र मोदी ने गरीबी जरूर देखी जिसका ज़िक़्र वो बार-बार करते हैं कैसे गरीब अपना भरण पोषण करता है चाहे कोई भी मंच हो…. खुद पीएम मोदी ओडिसा के बालासुर में रैली को संबोधित करते हुए गरीबी का ज़िक़्र भी करते हैं अमीरी और गरीबी में फ़र्क़ भी और अस्पताल में गरीबों की दुर्दशा की बात भी करते हैं, ओडिशा से दो दिन के भीतर सामने आयी दो तस्वीरों ने सरकार और सरकारी व्यवस्था पर सवालिया निशान खड़ा कर दिया है ।
आज उसी देश में आदिवासी दाना माझी को अपनी पत्नी अमंगादेई की लाश को चादर में लपेट कर कंधे पर उठा कर ग़रीबी में पैसे के आभाव में एम्बुलेंस नहीं दी जाती। जिस जनाज़े को ले जाने के लिए 4 कन्धों की जरुरत होती है आज उसी देश में एक शख़्स अपनी बीवी की लाश को अपने कंधे पर रखकर 12 किलोमीटर इसलिए पैदल चलना पड़ा क्योंकि उसके पास गाड़ी करने को रुपए नहीं थे। दरअसल मामला ओडिशा के कालाहांडी का है जहां से दो तस्वीरें सामने आईं हैं लेकिन पहले बात करते हैं

कंधे पर लाश उठाये पैदल चलता दाना मांझी और उसकी बेटी.
कंधे पर लाश उठाये पैदल चलता दाना मांझी और उसकी बेटी.
पहली घटना की…. जी हां आदिवासी दाना माझी की बीवी का इलाज चल रहा था, टीबी से जूझ रही माझी की पत्नी की मौत हो गई थी। माझी ने अस्पताल के अधिकारियों से लाश को ले जाने के लिए एक गाड़ी देने को कहा जिला अस्पताल प्रशासन ने कथित तौर पर उसे गाड़ी देने से मना कर दिया था। अस्पताल प्रशासन के मना करने के बाद आंसुओं में डूबी बेटी को साथ लेकर, खुद दाना माझी ने अपनी बीवी अमंगादेई की लाश को भवानीपटना के अस्पताल से चादर में पलेटा, उसे कंधे पर टिकाया और वहां से 60 किलोमीटर दूर स्थित थुआमूल रामपुर ब्लॉक के मेलघर गांव की ओर बढ़ चला। आज मैं सवाल पूछ रहा हूँ सरकारें गरीबों के जीवन का स्तर नहीं बदल पायी तो देश का विकास कैसा ? ये वाकई मानवता को शर्मसार कर देने वाली खबर है। लगातार माझी लाश कंधे पर लिए करीब 12 किलोमीटर तक चलता रहा, तब कुछ पत्रकारों ने उसे देखा और स्थानीय अधिकारियों को खबर की। लेकिन क्या मानवता यूँ ही शर्मशार होती रहेगी क्या अधिकारी यूँ ही पत्रकारों की धखलन्दाज़ी का इंतज़ार करते रहेंगे ? लेकिन जैसे ही पत्रकारों ने अधिकारियों से सवाल जवाब किये तो जल्द ही, आनन-फानन में एक एम्बुलेंस भेजी गई जो लाश को मेलघर गांव लेकर गई।मांझी पूछते हैं, ”मैंने सबके हाथ जोड़े, मगर किसी ने नहीं सुनी। उसे लाद कर ले जाने के सिवा मेरे पास और क्या चारा था”
मृत शरीर की हड्डियां तोड़कर, उसकी गठरी बनाकर मजदूरों के जरिये उसे स्टेशन पहुंचाया।
मृत शरीर की हड्डियां तोड़कर, उसकी गठरी बनाकर मजदूरों के जरिये उसे स्टेशन पहुंचाया।
वही दूसरी घटना भी बालासोर की ही है जहां एक और शर्मिंदा करने वाली खबर सामने आई। 80 वर्षीय सलमानी बेहरा की बालासोर सोरो रेलवे स्टेशन के पास मालगाड़ी की चपेट में आने से मौत हो गई थी बीते गुरूवार को अस्पताल वालों के मोर्चरी वैन देने से इनकार करने के बाद रेलवे पुलिस ने महिला के मृत शरीर की हड्डियां तोड़कर, उसकी गठरी बनाकर बांस के डंडे और मजदूरों के जरिये उसे स्टेशन पहुंचाया।
kanpur-dead-chiid जबकि तीसरा मामला यूपी के कानपुर से है। यहां के सबसे बड़े लाला लाजपत राय अस्पताल में ना इलाज मिला और ना ही एक वॉर्ड से दूसरे वॉर्ड में जाने के लिए स्ट्रेचर। बेटे ने पिता के कंधों पर ही तम तोड़ दिया। अस्पताल के इमरजेंसी डिपार्टमेंट ने सुनील कुमार के 12 वर्षीय बेटे अंश को भर्ती करने से इनकार कर दिया। उसे बच्चों से मेडिकल सेंटर ले जाने को कह दिया गया, लेकिन किसी ने स्ट्रेचर देने तक की मदद नहीं की। मजबूरन अपने अचेत बेटे को कंधे पर लेकर पिता यहां वहां भटकता रहा और आखिरकार मासूम ने दम तोड़ दिया। जबकि मेडिकल सेंटर वहां से करीब 250 मीटर दूर था।
पीड़ित परिवार के मुताबिक, अंश को तेज बुखार था। अंश को लेकर पहले स्थानीय अस्पताल ले जाया गया, जहां से शहर से सबसे बड़े एलएलआर अस्पताल ले जाने को कहा गया, लेकिन वहां भी निराशा हाथ लगी। एक पिता का दुःख समझियेगा, मैं डॉक्टरों के सामने गिड़गिड़ाया। मैं कह रहा था एक बार बच्चे की जांच कर लो। आधा घंटे बीत गया, लेकिन कोई इलाज नहीं मिला। आखिरकार मेरे बेटा चला गया। उत्तरप्रदेश के मुखिया मुलायम सिंह या अखिलेश तमाम दावे जरूर करते हैं अस्पतालों की सुविधाओं को लेकर लेकिन धरातल पर कितनी सुविधाएँ हैं इसकी बानगी इस खबर से पता चलती है ।
हालांकि ओडिसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक सरकार ने फ़रवरी माह में “महाप्रयाण” योजना की शुरुआत की थी इसके तहत सरकारी अस्पताल में किसी की मौत होने पर शव को घर तक पहुँचाने के लिए मुफ्त परिवहन की सुविधा दी जास्ती दी जाती है लेकिन दाना माझी और 80 वर्षीय सलमानी बेहरा को यह सुविधा नहीं मिली।
आज वो लोग दिखाई नहीं दिए जो हमेशा हिन्दू-मुस्लिम के बीच कड़वाहट या दरार डालने की बात करते हैं राजनेता अपनी-अपनी पार्टियों के गुणगान के चक्कर में एक दूसरे को गालियां देते हैं बड़े ताज़्जुब की बात है जहाँ एक हिंदुस्तान अमीर देशों की सूचि में इतना ऊपर हैं वहीँ दूसरी तरफ यह चेहरा, काश हमारे देश के नेता ये सब समझ पाते तो अच्छा लगता क्योंकि कथनी और करनी में अंतर होता है. कहाँ हैं वो लोग हमने देश का विकास कर दिया कहां हैं वो जो कहते हैं हम देश को बदलेंगे लेकिन कैसे ? हम लोग पहले भी गुलाम थे और आज भी गुलाम हैं बस फ़र्क़ सिर्फ इतना है की तब अंग्रेजों के गुलाम थे और आज गरीबी, भ्रष्टाचार, गुंडादर्दी, बलात्कार,अत्याचार, और जात-पात के। कुछ बदला है तो इंसानियत लेकिन कैसे ऐसे की लाश को कंधे पर उठा कर ले जाना पड़े ? आज उन पार्टियों के अंधभक्त कहाँ हैं जो एम्बुलेंसे के आगे अपने नेताओं की सेल्फी वाली फ़ोटो शेयर करते हैं । कहने में कोई गुरेज़ नहीं होगा की कन्धों पर सिस्टम की लाश चली जा रही है आज ये तस्वीर हमें बहुत कुछ सोचने पर मज़बूर कर देती है ।

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